श्री चंद्रदास जी महाराज जी का परिचय:-
धन्य है ये व्रज मंडल की पावन धरती जहां पर श्री राधावल्लभ भक्तों के प्राणधन भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बाल लीलाओं से जगत को कृतार्थ किया… इसी पुण्य भूमि पर महाराज श्री चंद्रदास जी का जन्म हुआ । बाल्यकाल से ही महाराज जी बहुत ही ऊर्जावान, विशिष्ठ प्रतिभावाले एवं भीड़ से अलग उनका जीवन था । उन्हें ये एहसास हमेशा से था कि उनका जन्म किसी विशिष्ठ उद्देश्य से है । उनको बचपन से ही संतो के बीच रहना बहुत अधिक प्रिय रहा है । महाराज जी का जन्म भी काफी संम्पन्न परिवार में हुआ । इनके घर में संतो एवं महापुरूषो का अक्सर ठहराना हुआ करता था । हरि चर्चा, भजन- कीर्तन, भागवत कथा व रामायण उनके घर का दिनप्रतिदिन का हिस्सा हुआ करता था । गुरु जी से मुलाकात बचपन मे ही हो गई । गुरु कृपा से उनके हृदय की गहराई में युगल चरणों के प्रति दृढ़ प्रेम था। अपनी शिक्षा-दीक्षा पूर्ण होते ही भागवत प्रेम में बाधा से बचने लिए उचित समय जान घर छोड़ विरक्त का जीवन जीना महाराज जी ने स्वीकार किया ताकि उन्हें किसी तरह का कोई रोक टोक न हो और उनके और भगवान के बीच कोई भी न हो । अपनी पेहचान छुपा कर बिना किसी साधन अकेल लंबे समय तक हिमालय पर साधना करते और दो तीन दिन में जो भी भागवत कृपा से फल पत्ते मिल जाता उसी से क्षुधा- निवृत्ति कर लेते । उसके उपरांत अनेक तीर्थो और अलग-अलग सम्प्रदाय के मंदिरों में रह कर भागवत आराधना की । बहुत जगह जगह भ्रमण करने पर यह दर्शन हुआ कि जगत में अधिकतर लोग तो भवरोग से ग्रसित हैं उन्होंने भागवत प्रेम का स्वाद तक नहीं पता । प्रकृति की भातिं संत भी संसार और जीव कृपा हेतु अपना सब कुछ लूटा देंते हैं । इतने लंबे समय तक भगवान के चिंतन से जो भागवत रस रूपी धन जो महाराज जी ने इकट्ठा किया था उसे लूटने का सही समय जान महाराज जी ने धर्म का प्रचार सुरु किया । सत्संग, हरीकीर्तन, वैराग, ध्यान, भजन के साथ साथ समाज सुधार हेतु बुरे कर्मों से बचने का सन्देश, धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा, सनातन धर्म की रक्षा, गौ माता की सेवा, अन्न वस्त्र सेवा दान, माता और बहन बेटियों की रक्षा, धर्म के अनुरूप आधुनिकता का जीवन के साथ साथ देश के लिए समर्पण भाव होना आदि की प्रेरणा अपने सत्संगों के माध्यम से करने लगें । समय का चक्का जैसे जैसे चलता रहा गुरूजी की ख्याति भी धीरे-धीरे जगत में फैलने लगी और वर्तमान में हजारों – लाखों लोग उन्हें अपना गुरू मानते हैं… वे ना केवल एक अध्यापक की भांति हैं अपुति वे सभी जो सत्य औऱ आत्मज्ञान की खोज में हैं… आत्मसाक्षात्कार कर सत्य की खोज में है उनके मित्र और उनके लिए ईश्वरीय मार्ग प्रशस्त करने वाले हैं जो उन्हे अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश को ओर ले जाते हैं।
महाराज जी अपने उद्देश्यों को गति देने और उनके बाद भी लोगों में ये भागवत संदेश का प्रचार प्रसार एवं सेवा प्रकल्प चलता रहे इस उद्देश्य से वर्ष 2010 में श्री वृन्दावन इंटरनेशनल फाउंडेशन की स्थापना करके उनके संस्थापक अध्यक्ष बनें ।
वैष्णव संप्रदाय में चार संप्रदाय वैदिक सम्प्रदाय हें जिनके स्थापको के रूप में स्वयं भगवान् अवतार रूप प्रगट हुवे हें । जिनमे विष्णुस्वामी संप्रदाय (रूद्र संप्रदाय) सबसे प्राचीन संप्रदाय है । महाराज जी इसी वैष्णव सम्प्रदाय में आते हैं । श्री वृन्दावन इंटरनॅशनल फाउंडेशन की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य है कि आज समाज पाश्चात्य जगत से प्रभावित होकर अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति और संस्कारों से विमुख होता जा रहा है । भोतिकतावादी युग में युवक-युवतियाॅं अपने बुजुगों, माता-पिता और समाज के प्रति कर्तव्यों से दूर हो रहे हैं । हमारे प्राचीन गन्थों के प्रसंगं एंव लोककथायें हमें माता-पिता, गुरू, समाज के प्रति सेवा भाव की प्रेरणा देती हैं । ऐसी दशा में जरूरत है कि युवाओं में हमारे प्राचीन संस्कारों की जानकारी देकर उन्हें अपने बुजुर्गोे और समाज के प्रति कत्वर्यशील बनाया जाये । इसके साथ ट्रस्ट के द्वारा अन्न दान, गौसेवा, वृक्षारोपण, गंगा-यमुना माता की सफाई, गौवंश की रक्षा व पीड़ित गौ सेवा, भ्रूंड हत्या रोकना, कन्याओ की रक्षा करना, धर्म सन्देश देना, सत्य का आचरण करना, नशा मुक्ति, सादा जीवन और शाकाहारी भोजन करना सत्य बोलना और धर्म के अनुरूप चलना आदि धर्माथ कार्य किये जा रहे है | श्री महाराज ही इस ट्रस्ट के अध्यक्ष है| आप से निवेदन है आप भी ट्रस्ट से जुड़े सत्य और धर्म के मार्ग व सेवाभाव पर चलने का प्रयत्न करे|